स्पाइनल स्टेनोसिस एक ऐसी स्थिति है जिसमें रीढ़ की हड्डी की नली (spinal canal) सिकुड़ने लगती है, जिससे नसों पर दबाव पड़ता है। यह समस्या गर्दन (cervical) या कमर (lumbar) में ज़्यादा देखने को मिलती है और दैनिक जीवन को काफी प्रभावित कर सकती है। स्पाइनल स्टेनोसिस योगासन इसे ठीक करने में एक प्राकृतिक और प्रभावी भूमिका निभाते हैं।
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रीढ़ की हड्डी में संकुचन का मतलब
जब स्पाइनल कनाल में जगह कम हो जाती है, तो नर्व्स को दबाव का सामना करना पड़ता है। इस संकुचन के कारण पीठ दर्द, सुन्नपन, कमजोरी, पैरों में झुनझुनी और चलने में परेशानी हो सकती है। यह स्थिति व्यक्ति की गतिशीलता को सीमित कर देती है, जिससे जीवन की गुणवत्ता में कमी आती है। स्पाइनल स्टेनोसिस योगासन इन लक्षणों को प्रबंधित करने में सहायक हो सकते हैं।
इसके कारण कौन से होते हैं?
स्पाइनल स्टेनोसिस के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें सबसे आम हैं:
- बढ़ती उम्र: उम्र के साथ रीढ़ की हड्डी में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तन, जैसे कि डिस्क का सूखना, हड्डियों का घिसना (डिजनरेशन) और लिगामेंट्स का मोटा होना, इस स्थिति को बढ़ावा देते हैं। यह रीढ़ की हड्डी के सामान्य पहनने और टूटने का परिणाम है। कम उम्र के लोग जिन्हे अभी अभी कमर दर्द शुरू हुआ है वो भी स्पाइनल स्टेनोसिस योगासन करके स्टेनोसिस होने से रोक सकते हैं |
- अर्थराइटिस: ऑस्टियोआर्थराइटिस जैसी स्थितियां रीढ़ की हड्डी में सूजन और हड्डियों के असामान्य विकास का कारण बन सकती हैं। रूमेटाइड अर्थराइटिस भी रीढ़ की हड्डी को प्रभावित कर सकता है।
- हड्डियों का बढ़ना (Bone Spurs): शरीर क्षतिपूर्ति के रूप में हड्डियों पर अतिरिक्त ग्रोथ विकसित कर सकता है, जिन्हें बोन स्पर्स या ऑस्टियोफाइट्स कहते हैं। ये स्पाइनल कनाल को संकरा कर सकते हैं और नसों पर दबाव डाल सकते हैं।
- रीढ़ की पुरानी चोटें: रीढ़ की हड्डी में पहले हुई चोटें, जैसे कि फ्रैक्चर, लिगामेंट की क्षति, या डिस्क हर्निएशन, समय के साथ स्पाइनल स्टेनोसिस का कारण बन सकती हैं, जिससे रीढ़ की संरचना में बदलाव आता है।
- लिगामेंट का मोटा होना: रीढ़ की हड्डी के लिगामेंट (विशेषकर लिगामेंटम फ्लेवम) उम्र के साथ मोटे और कठोर हो सकते हैं, जिससे स्पाइनल कनाल में जगह कम हो जाती है। स्पाइनल स्टेनोसिस योगासन इन लिगामेंट्स को स्ट्रेच करके स्टेनोसिस होने से रोक सकते हैं |
योग और स्पाइनल स्टेनोसिस का रिश्ता
स्पाइनल स्टेनोसिस योगासन के लिए एक प्राकृतिक और प्रभावी तरीका है।
योग कैसे करता है मदद?
योग रीढ़ की हड्डी को धीरे-धीरे खोलने, रक्त संचार बढ़ाने, लचीलापन सुधारने और आसपास की मांसपेशियों को मजबूत करने में मदद करता है। यह दर्द को कम करता है और चलने-फिरने की क्षमता बढ़ाता है। योग के नियमित अभ्यास से रीढ़ की हड्डी की लचीलता बढ़ती है, जिससे नसों पर पड़ने वाला दबाव कम होता है। यह कोर मसल्स को मजबूत करता है, जो रीढ़ की हड्डी को सहारा देने और उसकी स्थिरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। स्पाइनल स्टेनोसिस योगासन शरीर की मुद्रा (पोस्चर) को भी सुधारते हैं।
क्यों है सुबह का समय सबसे सही?
सुबह का समय शरीर के लिए सबसे शांत और ताज़ा होता है। इस समय किया गया योग पूरे दिन के लिए ऊर्जा, लचीलापन और दर्द से राहत देता है। सुबह मांसपेशियां और जोड़ थोड़े सख्त होते हैं, और योग उन्हें धीरे-धीरे स्ट्रेच करके ढीला करने में मदद करता है। यह दिन की शुरुआत सकारात्मकता, शारीरिक आराम और मानसिक शांति के साथ करने का एक शानदार तरीका है। सुबह के समय एकाग्रता भी अधिक होती है, जिससे स्पाइनल स्टेनोसिस योगासन का अभ्यास अधिक प्रभावी होता है।
योग शुरू करने से पहले ध्यान देने योग्य बातें
डॉक्टर की सलाह क्यों ज़रूरी है?
हर व्यक्ति की स्पाइनल स्टेनोसिस की स्थिति अलग होती है। किसी को हल्के योगासन फायदेमंद हो सकते हैं तो किसी को नुकसान। इसलिए, स्पाइनल स्टेनोसिस योगासन शुरू करने से पहले डॉक्टर या फिजियोथैरेपिस्ट की सलाह लेना अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे आपकी व्यक्तिगत स्थिति, रीढ़ की हड्डी के संकुचन की गंभीरता और किसी भी अन्य संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं का आकलन करके सबसे उपयुक्त योगासनों और आवश्यक सावधानियों के बारे में मार्गदर्शन कर सकते हैं। स्व-उपचार से बचें।
दर्द बढ़े तो क्या करें?
यदि किसी योगासन से दर्द बढ़े या नया दर्द महसूस हो तो तुरंत उसे करना बंद करें और किसी एक्सपर्ट से संपर्क करें। दर्द बढ़ना एक संकेत है कि या तो आप आसन गलत तरीके से कर रहे हैं या वह आसन आपकी स्थिति के लिए उपयुक्त नहीं है। अपने शरीर की सुनें और ज़बरदस्ती न करें। स्पाइनल स्टेनोसिस योगासन का उद्देश्य राहत देना है, दर्द बढ़ाना नहीं।
7 प्रभावी योगासन जो स्पाइनल स्टेनोसिस में देते हैं राहत
ये योगासन स्पाइनल स्टेनोसिस योगासन के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं, बशर्ते सही ढंग से और सावधानी से किए जाएं:
- ताड़ासन (Mountain Pose)
- इसे कैसे करें? दोनों पैरों को साथ रखें, सीधा खड़े हो जाएं। सांस लेते हुए हाथों को ऊपर ले जाएं, उंगलियों को आपस में फंसा लें और हथेलियों को ऊपर की ओर मोड़ें। पूरे शरीर को ऊपर की ओर खींचें, जैसे कि आप आसमान को छूना चाहते हों। एड़ियों को ऊपर उठाएं और पंजों पर संतुलन बनाएं। कुछ सेकंड के लिए इस स्थिति में रहें और फिर सांस छोड़ते हुए धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में आ जाएं।
- फायदे क्या हैं? यह रीढ़ की हड्डी को सीधा करता है, उसकी लंबाई बढ़ाने में मदद करता है और शरीर की समग्र मुद्रा में सुधार लाता है। यह पैरों, जांघों और टखनों को मजबूत करता है और पूरे शरीर में रक्त संचार को बेहतर बनाता है।

- भुजंगासन (Cobra Pose)
- करने की विधि: पेट के बल लेट जाएं। हाथों को कंधों के पास रखें, हथेलियां जमीन पर हों। धीरे-धीरे सांस लेते हुए सिर, गर्दन और छाती को ऊपर उठाएं, कोहनियों को शरीर के पास रखें। नाभि तक शरीर को ऊपर उठाने की कोशिश करें, लेकिन कमर पर अत्यधिक जोर न डालें। दृष्टि सामने या ऊपर की ओर रखें।
- सतर्कता: यदि स्लिप डिस्क या गंभीर पीठ दर्द है तो यह आसन डॉक्टर की सलाह से ही करें और बहुत धीरे-धीरे करें। इसे करते समय कमर में किसी भी तरह का तेज दर्द महसूस हो तो तुरंत रुक जाएं। स्पाइनल स्टेनोसिस योगासन में यह महत्वपूर्ण है कि आप अपनी सीमाएं समझें।

- मकरासन (Crocodile Pose)
- करने की विधि: पेट के बल लेट जाएं, ठोड़ी को हाथों पर टिकाएं। पैरों को थोड़ा खोलें और पंजों को बाहर की ओर मोड़ें, ताकि पूरा शरीर पूरी तरह से रिलैक्स रहे। अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित करें।
- फायदे: यह आसन आराम और मांसपेशियों की गहराई से ढील देता है, खासकर पीठ के निचले हिस्से की मांसपेशियों को। यह तनाव कम करने, शरीर को शांत करने और रीढ़ की हड्डी को विश्राम देने में सहायक है। यह भुजंगासन के बाद एक अच्छा काउंटर पोज भी है।

- वज्रासन (Thunderbolt Pose)
- करने की विधि: घुटनों को मोड़कर बैठें, नितंबों को एड़ियों पर टिकाएं। हाथों को घुटनों पर रखें, हथेलियां नीचे की ओर हों। अपनी रीढ़ को सीधा रखें और सामने देखें। आप चाहें तो अपनी एड़ियों को थोड़ा सा अलग भी रख सकते हैं।
- फायदे: यह पाचन सुधारता है और कमर के निचले हिस्से में खिंचाव को कम करता है। भोजन के बाद किया जाने वाला यह एकमात्र आसन है जो पाचन में सहायता करता है। यह पैरों और जांघों में रक्त संचार को भी बेहतर बनाता है। स्पाइनल स्टेनोसिस योगासन में यह आरामदायक मुद्रा मानी जाती है।

- अर्ध उत्तानासन (Half Forward Bend)
- करने की विधि: खड़े होकर कमर से झुकें, लेकिन पूरी तरह नीचे न जाएं। अपनी रीढ़ को सीधा रखें और हाथ घुटनों या पिंडलियों तक लाएं। यदि आवश्यक हो तो घुटनों को थोड़ा मोड़ सकते हैं। पीठ को सीधा रखने की कोशिश करें, न कि गोल करने की।
- सतर्कता: यह नर्व्स स्ट्रेच के लिए लाभकारी है, लेकिन धीरे-धीरे करें। झटके से झुकने से बचें। यदि चक्कर आता हो तो सावधानी बरतें।

- शलभासन (Locust Pose)
- करने की विधि: पेट के बल लेटें, हाथों को शरीर के पास रखें, हथेलियां ऊपर की ओर हों या मुट्ठी बंद हों। ठोड़ी को जमीन पर टिकाएं। सांस लेते हुए एक या दोनों पैरों को धीरे-धीरे ऊपर उठाएं, घुटनों को सीधा रखें। सिर को जमीन पर टिका सकते हैं या थोड़ा ऊपर उठा सकते हैं। कुछ सेकंड रुकें और फिर सांस छोड़ते हुए नीचे आएं।
- फायदे: यह पीठ की निचली मांसपेशियों को मजबूत बनाता है, जिससे रीढ़ की हड्डी को बेहतर सहारा मिलता है। यह नितंबों और जांघों को भी मजबूत करता है और पाचन अंगों को उत्तेजित करता है। यह आसन स्पाइनल स्टेनोसिस योगासन में पीठ की ताकत बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है।

- बालासन (Child’s Pose)
- करने की विधि: घुटनों के बल बैठें, नितंबों को एड़ियों पर टिकाएं। माथा ज़मीन पर टिकाएं और दोनों हाथ सामने फैलाएं या शरीर के साथ पीछे की ओर ले जाएं, हथेलियां ऊपर की ओर हों। अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित करें और पूरी तरह से शरीर को ढीला छोड़ दें।
- फायदे: यह रीढ़ के लिए अत्यंत आरामदायक और तनाव हटाने वाला आसन है। यह मन को शांत करने, शरीर को विश्राम देने और पीठ के निचले हिस्से में हल्का खिंचाव प्रदान करने में मदद करता है। यह आसन में अत्यधिक अनुशंसित है क्योंकि यह रीढ़ को आराम देता है।

स्पाइनल स्टेनोसिस योगासन करते समय किन गलतियों से बचें?
- दर्द सहकर कोई भी आसन न करें: अपने शरीर की सुनें और यदि कोई दर्द या असुविधा महसूस हो तो तुरंत रुक जाएं। दर्द को नज़रअंदाज़ करने से स्थिति और बिगड़ सकती है।
- जल्दी-जल्दी या झटके से न करें: योगासनों को धीरे-धीरे, नियंत्रित तरीके से और पूरी जागरूकता के साथ करें। हर आसन में स्थिरता और श्वास का समन्वय महत्वपूर्ण है।
- सांस को रोककर न करें: योग में सांस का प्रवाह बहुत महत्वपूर्ण है। आसनों के दौरान सामान्य रूप से और लयबद्ध तरीके से सांस लेते रहें। सांस रोकना अनावश्यक तनाव पैदा करता है।
- विशेषज्ञ की सलाह के बिना जटिल आसन न करें: खासकर स्पाइनल स्टेनोसिस योगासन के मामलों में, केवल उन आसनों का अभ्यास करें जिनकी सलाह विशेषज्ञ ने दी हो।
नियमित अभ्यास से आने वाले बदलाव
स्पाइनल स्टेनोसिस योगासन का नियमित अभ्यास करने से कई सकारात्मक बदलाव आ सकते हैं:
- दर्द में राहत: नसों पर पड़ने वाला दबाव कम होता है, जिससे पीठ, पैरों और कूल्हों में दर्द में कमी आती है।
- बैठने और चलने में सहजता: रीढ़ की हड्डी की लचीलता और ताकत बढ़ने से दैनिक गतिविधियां जैसे बैठना, चलना और खड़ा होना आसान हो जाता है।
- मांसपेशियों की ताकत और लचीलापन बढ़ता है: कोर और पीठ की मांसपेशियां मजबूत होती हैं, जो रीढ़ की हड्डी को स्थिरता और बेहतर सहारा प्रदान करती हैं।
- संतुलन में सुधार: योग संतुलन में सुधार करता है, जिससे गिरने का जोखिम कम होता है, जो स्पाइनल स्टेनोसिस के रोगियों के लिए महत्वपूर्ण है।
- मानसिक शांति: योग तनाव और चिंता को कम करने में मदद करता है, जो पुराने दर्द से अक्सर जुड़े होते हैं।
जीवनशैली में और क्या-क्या सुधार करें?
स्पाइनल स्टेनोसिस योगासन के साथ-साथ, जीवनशैली में कुछ बदलाव भी इस स्थिति को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने में सहायक होते हैं:
बैठने और उठने का तरीका
- लंबे समय तक एक ही स्थिति में न बैठें, खासकर झुककर। हर 30-45 मिनट में उठकर थोड़ा चलें या स्ट्रेच करें।
- कुर्सी पर बैठते समय रीढ़ सीधी रखें और अपनी पीठ के निचले हिस्से को सहारा देने के लिए कुशन या तौलिये का उपयोग करें। एड़ियों को जमीन पर सपाट रखें।
नींद और आराम का महत्त्व
- सख्त या मध्यम-सख्त गद्दे का प्रयोग करें जो रीढ़ की हड्डी को उचित सहारा प्रदान करे और उसे सीधी रेखा में रखे।
- सोते समय करवट लेकर सोएं और पैरों के बीच एक तकिया रखें, ताकि रीढ़ सीधी रहे और कूल्हों पर अनावश्यक दबाव न पड़े। पीठ के बल सोते समय घुटनों के नीचे तकिया रख सकते हैं।
- पर्याप्त नींद लेना शरीर की रिकवरी और दर्द प्रबंधन के लिए आवश्यक है।
निष्कर्ष
स्पाइनल स्टेनोसिस से जूझ रहे लोगों के लिए योग एक प्राकृतिक और प्रभावी तरीका है दर्द को कम करने और जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने का। स्पाइनल स्टेनोसिस योगासन का नियमित अभ्यास, डॉक्टर की सलाह और सही जीवनशैली के साथ मिलकर, आपको अधिक आरामदायक और सक्रिय जीवन जीने में मदद कर सकता है। रोज़ सुबह कुछ आसान योगासन से दिन की शुरुआत करें, धीरे-धीरे शरीर को स्ट्रेच दें और हर दिन थोड़ा बेहतर महसूस करें। याद रखें, धैर्य, निरंतरता और अपने शरीर की सीमाओं का सम्मान करना कुंजी है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
- क्या योग से स्पाइनल स्टेनोसिस पूरी तरह ठीक हो सकता है?
- नहीं, योग से स्पाइनल स्टेनोसिस को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह एक डिजेनरेटिव (अपक्षयी) स्थिति है। हालांकि, नियमित और सही योगासन का अभ्यास लक्षणों को काफी हद तक कम करने, दर्द से राहत देने, रीढ़ की हड्डी के लचीलेपन में सुधार करने और जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने में बहुत मदद कर सकता है। यह एक सहायक उपचार पद्धति है।
2. स्पाइनल स्टेनोसिस में कौन से योगासन सबसे ज़्यादा फायदेमंद होते हैं?
- स्पाइनल स्टेनोसिस में हल्के फॉरवर्ड बेंड्स (जैसे बालासन), बैकबेंड्स (जैसे भुजंगासन – हल्का), और ऐसे आसन जो रीढ़ की हड्डी में जगह बढ़ाने में मदद करते हैं, फायदेमंद होते हैं। ताड़ासन, मकरासन, वज्रासन और मार्जरीआसन (कैट-काउ पोज़) भी विशेष रूप से लाभकारी माने जाते हैं क्योंकि वे रीढ़ को धीरे-धीरे फैलाते हैं और मांसपेशियों को मजबूत करते हैं।
3. स्पाइनल स्टेनोसिस के मरीजों को कौन से योगासन नहीं करने चाहिए?
- स्पाइनल स्टेनोसिस के मरीजों को गहरे बैकबेंड्स (गहरे धनुरासन या चक्रासन), तीव्र ट्विस्टिंग आसन (जैसे गहरे अर्ध मत्स्येन्द्रासन), और ऐसे आसन जिनसे रीढ़ पर सीधा या अत्यधिक दबाव पड़ता हो, उनसे बचना चाहिए। किसी भी ऐसे आसन से बचें जिससे दर्द बढ़े या असहजता महसूस हो। डॉक्टर या योग विशेषज्ञ की सलाह लेना ज़रूरी है।
4. योग शुरू करने से पहले डॉक्टर की सलाह लेना क्यों ज़रूरी है?
- हर व्यक्ति की स्पाइनल स्टेनोसिस की स्थिति अलग होती है। डॉक्टर या फिजियोथेरेपिस्ट आपकी रीढ़ की हड्डी की स्थिति, संकुचन की गंभीरता और किसी भी अन्य संबंधित स्वास्थ्य समस्या का आकलन करके यह बता सकते हैं कि कौन से योगासन आपके लिए सुरक्षित और उपयुक्त हैं, और कौन से नहीं। उनकी सलाह के बिना योग शुरू करने से नुकसान हो सकता है।
5. कितने समय तक और कितनी बार योगासन का अभ्यास करना चाहिए?
- शुरुआत में, प्रतिदिन 15-20 मिनट के लिए हल्के योगासनों का अभ्यास करें। धीरे-धीरे आप समय और तीव्रता बढ़ा सकते हैं। नियमितता महत्वपूर्ण है; हर दिन थोड़ा अभ्यास करना कभी-कभार लंबे सत्र करने से बेहतर है।
6. क्या योग स्पाइनल स्टेनोसिस के कारण होने वाले पैरों में सुन्नपन और झुनझुनी को कम कर सकता है?
- हाँ, योग रीढ़ की हड्डी के संकुचन के कारण नसों पर पड़ने वाले दबाव को कम करके पैरों में सुन्नपन, झुनझुनी और कमजोरी जैसे लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है। यह रक्त संचार को बेहतर बनाता है और नसों को राहत देता है।
7. योग करते समय दर्द महसूस हो तो क्या करें?
- यदि योग करते समय दर्द महसूस हो या मौजूदा दर्द बढ़ जाए, तो तुरंत वह आसन करना बंद कर दें। दर्द शरीर का संकेत है कि कुछ गलत हो रहा है। ऐसे में तुरंत विशेषज्ञ से संपर्क करें और अपनी स्थिति के बारे में बताएं।
8. क्या योग के साथ फिजियोथेरेपी भी करानी चाहिए?
- हाँ, अक्सर स्पाइनल स्टेनोसिस योगासन के साथ फिजियोथेरेपी का संयोजन अधिक लाभकारी होता है। फिजियोथेरेपी विशेष रूप से मांसपेशियों को मजबूत करने और रीढ़ की हड्डी को सहारा देने पर ध्यान केंद्रित करती है, जबकि योग समग्र लचीलेपन, मुद्रा और तनाव प्रबंधन में मदद करता है। दोनों मिलकर बेहतर परिणाम दे सकते हैं।
9. क्या स्पाइनल स्टेनोसिस में प्राणायाम भी लाभदायक है?
- हाँ, प्राणायाम (सांस लेने के व्यायाम) स्पाइनल स्टेनोसिस के रोगियों के लिए बहुत लाभदायक हो सकता है। यह तनाव और चिंता को कम करता है, जो पुराने दर्द से अक्सर जुड़े होते हैं। अनुलोम-विलोम और भ्रामरी जैसे प्राणायाम मन को शांत करने और शरीर में ऑक्सीजन के स्तर को बेहतर बनाने में मदद करते हैं।
10. क्या योग के अलावा और क्या जीवनशैली में बदलाव लाने चाहिए?
- स्पाइनल स्टेनोसिस योगासन के साथ, सही मुद्रा (बैठने, खड़े होने और चलने की), सख्त गद्दे पर सोना, वजन को नियंत्रित रखना, और शारीरिक रूप से सक्रिय रहना (लेकिन अपनी सीमा में) महत्वपूर्ण है। भारी सामान उठाने से बचें और यदि उठाना पड़े तो सही तकनीक का उपयोग करें।
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डॉ. विवेक अरोरा (BPT, MPT, FRCPT, MIAP) एक अनुभवी और लाइसेंस प्राप्त फिजियोथेरपिस्ट हैं, जिन्हें स्पाइन और ज्वाइंट के दर्द का वैज्ञानिक और दीर्घकालिक समाधान प्रदान करने में विशेषज्ञता प्राप्त है। वे 20 वर्षों से अधिक समय से मरीज़ों को सर्जरी के बिना बेहतर जीवन देने के लिए कार्यरत हैं। डॉ. अरोरा का उद्देश्य स्वास्थ्य शिक्षा के माध्यम से दुनियाभर के लोगों को जागरूक और सशक्त बनाना है।
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